Sunday 15 December 2013

एक स्वच्छंद आसमान
खोता नहीँ......
पाता जाता है....
बहुत कुछ
उस खुली धरती की
फैली बाज़ुओँ मेँ
समाया ब्रह्माण्ड

आरंभ का प्रारंभ
अंत का अंत
सत्य का सत्य
और
मिथ्या का मिथ्य
सुख का सुख
और
दुख का दुख
सब वृक्ष की टहनियाँ
या अलंकार
संभव का संभव होना
या
असंभव का असंभव होना
ग्राह्य हर क्षण
है भी नहीँ भी
विद्रोही मन या संतोषी मन
द्वंद्व की धरा चीरते पग पग
झकझोरता धिक्कारता
सबलता या निर्बलता
भाव की पृष्ठभूमि
अभिव्यक्ति की भूमिका

बस प्रतिबंध नहीँ

॰॰॰॰॰ निशा चौधरी ।

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