Sunday 15 December 2013

स्वयं की प्रतीक्षा मेँ
आँखेँ जाग रहीँ रात भर
नीँद आती
पर बिना कुछ कहे
चली जाती
कभी कभी मेरे साथ
वो भी जगी रही
सहायक बनी रही मेरी
पूरी रात
शायद उसे भी
नीँद नहीँ आ रही
या शायद वो भी
उस क्षण को
खोना नहीँ चाहती
जिसमेँ मैँ स्वयं से मिलूँगी

सदियाँ बीत गई
मगर यह तथ्य ना बदला
कि '' मैँ '' को हमेशा
स्वयं की ही
तलाश होती है ।

¤¤¤¤ निशा चौधरी ।

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