विरानी सी सजती एक भव्य विराट उन्मेष सौँधी सी ख़ुशबू पर वारी न्यारी द्वेष किसी वीरा या कुँवर की सादा या भँवर ज्योँ का ज्योँ रंग भीगा स् जन उमंग सागर सी लहराई विह्वल हो सकुचाई क्या संग क्या अंतरंग विगत स्वभाव सौजन्य ही चरमराई अनभिज्ञ सी विविधता को समेटे अंजलि की रेखाओँ ने अभावोँ को सहेजा अतिशय समय सीमाओँ ने कहीँ अजब कहीँ विजय सी शैल पाई दुर्लभ सी निर्झर की चाह झरने की श्रंगार भद्र वसन की इच्छित वर वरन् दो कि स्वागत हो शरणागत की सौन्दर्य वैभव विभाजित गुण दोष विवाहित अहं सी समर्पित व्यर्थ रोम रोम ,गुँजता सा परहित का समावेश व्यंजना ,पर अग्रिम एक ही एकाग्रता को जागती आँखोँ का स्वप्न निर्मल आत्मा का विभोर रागोँ का मिश्रित रुप वैधव्यता की राई थी पथरीली भी बंजर भी विषयोँ का समंदर भी एक ही बादल की बूँद व्यथित ह्रदय सी गूँज सीधे सादे आमरण का वक्तव्य रुप हठीला क्षणभंगुर -सा क्षण अलंघ्य पर्वत की सीमा विराना ही आवरण था उस अन्जान सी धरातल पर । ***** निशा चौधरी । |
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