Sunday, 15 December 2013

जो देख सकूँ मैँ सच को
तो सच को देखूँ तुम मेँ
तुम सच को देखो मुझ मेँ
तो मोहित होना क्षण मेँ

मिलना उस जीवन मेँ
जो पार है वैतरणी के
खिलना मधुर मुस्कान लिए

पारिजात की डंठल बन मैँ
तुझको नित निहारा करुँ
तुम्हारी मीठी सुगंध मेँ
ख़ुद को रोज बिसारा करुँ

जो पास हुए तो ढूंढूं कैसे
जो दूर हुए तो खोजूँ खुद मेँ

तुम शब्द बने जो अंतरमन के
मैँ लिख दूँ तुमको छंदोँ मेँ
जो देख सकूँ मैँ सच को
तो देखूँ तुमको जीवन मेँ ।

¤¤¤¤ निशा चौधरी

No comments:

Post a Comment