इक ओर
निश्छलता
इक छोर
अभिनय
मिथ्या
मृगतृष्णा हो जैसे
तिरस्कृत भाव
अवहेलना हो जैसे
धिक्कार है
उस युग की
शिथिलता पर
उसके
अस्तित्व पर
जो रोक न सका
चुप चाप देखता रहा
उस आडंबर को
॰॰॰॰ निशा चौधरी ।
निश्छलता
इक छोर
अभिनय
मिथ्या
मृगतृष्णा हो जैसे
तिरस्कृत भाव
अवहेलना हो जैसे
धिक्कार है
उस युग की
शिथिलता पर
उसके
अस्तित्व पर
जो रोक न सका
चुप चाप देखता रहा
उस आडंबर को
॰॰॰॰ निशा चौधरी ।
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