सी चाँदनी , छिटक कर , मेरी अंजलि मेँ गिरतीँ हैँ , मैँ उछाल देती हूँ , उनको हवाओँ मेँ , वे चमक कर , तारे बन जाते हैँ , टिमटिमाते , इठलाते , दूर से इशारोँ मेँ बाते करते हैँ वो मुझसे , झिलमिलाते हैँ , चमचमाते हैँ , हँसते हैँ , खिलखिलातेँ हैँ , हर रोज़ आकाश मेँ , वो उसी जगह मिलते हैँ , कभी मैँ उनका तो , कभी वो मेरा इंतज़ार करतेँ हैँ , चाँद से भी प्यारे , मुझको हैँ वो तारे , जो दूसरोँ की नहीँ , ख़ुद की रौशनी से चमकते हैँ । ॰॰॰॰॰॰॰॰॰ निशा चौधरी । |
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