Sunday, 15 December 2013

सच है बिल्कुल
मान लिया है
कि अब तुम मेरे ,
जीवन मेँ नहीँ

पर ये भी क्या सत्य नहीँ
कि मैँ भी अब तुम्हारे जीवन मेँ नहीँ ?

तुमने भी खो दिया है , मुझको ?
मेरे जैसी तो
तुम्हे कोई और
मिल ही नही सकती
तो तुम भी सीख लो
मेरे बिना रहना
अपने नसीब पे रोना
अपने नसीब को कोसना
मेरे जीवन की करोड़ोँ खुशियाँ
पर तुम्हारे ऐसे नसीब कहाँ
कि मेरे खुशियोँ से जुड़ सको

शुक्रग़ुज़ार हूँ उन लम्होँ का
जिसमेँ तुम मुझसे दूर गए
दु:खद एहसास तो था
तुम्हारे जाने का
मगर अब खुश हूँ

क्योँकि.... शायद
मेरे नसीब अच्छे हैँ

¤¤¤ निशा चौधरी ।

No comments:

Post a Comment