मैँने बारिश को नहीँ बारिश ने मुझे चुन लिया छलकती रही...... नयनोँ के आसमान से सूरज.... वो सिन्दूरी वाला धुल धुल कर गिरता रहा ज़मीन पर जो अक़्स गढ़ गया वो तुम थे या मैँ थी एक तैरता सा समंदर रुक गया ज़मीन पर और ज़मीन तैर कर निकल गई दूर..... कहीँ दूर जहाँ सिर्फ और सिर्फ रेगिस्तान ही नज़र आया और पास जाने पर मृगतृष्णा...... जो मन छल गया वो तुम थे या मैँ थी सर्द रातोँ की सिहरती सी खुशबू गुलाब की ठिठुरती पंखुड़ियाँ गेँदे के मचलते पत्ते कांपते रहे रात भर चाँद सितारे बादल और बिजली सब छिपते रहे छिपाते रहे खुद से खुद को साथ कोई और भी था जो छिपता रहा छिपाता रहा वो तुम थे या मैँ थी ॰॰॰॰ निशा चौधरी । |
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