Wednesday 29 January 2014

बदलाव !!!

हम दबते रहेँ
वो दबाते रहेँ
हम आवाज़ उठाते हैँ
वो बयान देतेँ हैँ
अब तो लड़कियोँ से
बात करना भी है मुश्किल
सिर पे आँचल लिया तो कहा......
परचम क्योँ नहीँ बनाया
और परचम बनाया तो कहा
शर्मोँ लिहाज़ भूल चुकीँ है ये
हमारे जन्म पे खतरा मँडराया
तो डर गए कि कहीँ
ख़ुद का अस्तित्व खतरे मेँ न पड़ जाए
और जन्म लिया तो कहा....
बिटिया क्योँ घर आई
कहीँ पल गई दुलार से
कहीँ पली उलाहने से
मगर परेशानी दोनोँ की एक सी
बदतमीज़ नज़रेँ
अनचाहे र्स्पश
पीछे पड़े हर वक़्त
इशारे किए जिसने
उसे रोकने के बजाय
हिदायत मिली
नज़र बचा के चलो
देखो मत उस ओर
बस फिर से वही
गलती किसी और की
और सज़ा किसी और को मिली

फिर भी चली बार बार
गिरी बार बार तो
उठी भी बार बार
अपनी बात कहने को
खुद को स्थापित करने को

सहनशीलता का पाठ पढ़ाया
मगर भूल गए
कि
धरती भार सहती है
बोझ नहीँ
अन्याय नहीँ
पाप नहीँ
दुराचार नहीँ सहती

ज़रुरी है बदले विचार
सदियोँ से जो बहती आयी है
बदले वो बयार

हर सदा जो आह बनकर
दिल से है निकल रही
अब उस आह को भी होना होगा आग मेँ तैयार ।

॰॰॰॰ निशा चौधरी ।

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